इस वर्ष जनवरी से अप्रैल तक मध्य हिमालय में रिकॉर्ड बर्फबारी से हिमखंडों की सेहत सुधरी है। तात्कालिक रूप से हिमखंडों के पिघलने की दर में भी कमी आई है। अकेले केदारनाथ क्षेत्र में ही सर्दियों के सीजन में रिकॉर्ड 60 फीट तक बर्फ गिरी है। चोपता, तुंगनाथ, दुगलबिट्टा में भी इस बार बर्फबारी का रिकॉर्ड टूटा है। गर्मियों में भी हिमालय की चोटियां बर्फ से लकदक बनी रही।
अक्टूबर से अप्रैल तक मध्य हिमालय में बर्फबारी होना आम माना जाता है। इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच इस क्षेत्र में कई बार 16 से 48 घंटों तक निरंतर भारी बर्फबारी हुई। पूरे सीजन में केदारनाथ में 60 फीट तक बर्फ गिरी, जो रिकॉर्ड है। अप्रैल मध्य तक यहां मंदिर परिसर में 18 फीट तक बर्फ मौजूद थी। केदारनाथ-गौरीकुंड पैदल मार्ग भी जंगलचट्टी तक बर्फ से ढका रहा।
अक्टूबर से अप्रैल तक मध्य हिमालय में बर्फबारी होना आम माना जाता है। इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच इस क्षेत्र में कई बार 16 से 48 घंटों तक निरंतर भारी बर्फबारी हुई। पूरे सीजन में केदारनाथ में 60 फीट तक बर्फ गिरी, जो रिकॉर्ड है। अप्रैल मध्य तक यहां मंदिर परिसर में 18 फीट तक बर्फ मौजूद थी। केदारनाथ-गौरीकुंड पैदल मार्ग भी जंगलचट्टी तक बर्फ से ढका रहा।
पांच वर्षों की तुलना में सर्दियों में सबसे अधिक बर्फ गिरी
यही नहीं, सितंबर के दूसरे सप्ताह तक भी पैदल मार्ग पर भैरव गदेरा व अन्य दो स्थानों पर जमी हुई मौजूद हैं। तृतीय केदार तुंगनाथ व चोपता में भी बीते सर्दियों में जमकर बर्फबारी हुई थी। यहां बीते पांच वर्षों की तुलना में सर्दियों में सबसे अधिक बर्फ गिरी थी। इसके अलावा गांवों में भी बर्फबारी का नया रिकॉर्ड बना। त्रियुगीनारायण, तोषी, गौंडार, रांसी आदि गांवों में भी 7 से 10 फीट तक बर्फ गिरी।
वाडिया संस्थान देहरादून के भू-वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि इस वर्ष जनवरी से मई तक मध्य हिमालय क्षेत्र में उम्मीद से कई अधिक बर्फबारी हुई, जिससे हिमखंडों की सेहत सुधरी है। मई-जून में तेज गर्मी में भी ग्लेशियरों के पिघलने की गति में कमी पाई गई। चोराबाड़ी और आसपास के ग्लेशियरों में बीते कई वर्षों में इस बार अधिक बर्फ मौजूद है, जो प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ है।
वाडिया संस्थान देहरादून के भू-वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि इस वर्ष जनवरी से मई तक मध्य हिमालय क्षेत्र में उम्मीद से कई अधिक बर्फबारी हुई, जिससे हिमखंडों की सेहत सुधरी है। मई-जून में तेज गर्मी में भी ग्लेशियरों के पिघलने की गति में कमी पाई गई। चोराबाड़ी और आसपास के ग्लेशियरों में बीते कई वर्षों में इस बार अधिक बर्फ मौजूद है, जो प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ है।
सावन में 25 मिमी कम बारिश हुई
चोपता, दुगलबिट्टा, तुंगनाथ, मनणी, मद्महेश्वर व अन्य बुग्यालों में इस वर्ष जुलाई-अगस्त में बीते वर्ष की तुलना में 25 मिमी बारिश कम हुई है, जिससे बुग्यालों के निचले क्षेत्रों की नमी पर प्रभाव पड़ रहा है। अगर, बीती सर्दियों में भारी बर्फबारी नहीं हुई होती, तो यहां सूखे के हालात पैदा हो सकते थे, जिसका खतरा बना हुआ है।
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि श्रीनगर गढ़वाल के उच्च पादप शोध संस्थान के वैज्ञानिक विजयकांत पुरोहित ने बताया कि तुंगनाथ के बुग्यालों में वर्ष 2018 के सावन में 75 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन इस वर्ष सिर्फ 50 मिमी बारिश हुई है। जो बारिश हुई भी है, वह तेज हुई, जिससे यहां जमीन के अंदर पर्याप्त पानी नहीं पहुंचा है, जिस कारण बरसाती स्रोत भी नहीं फूटे हैं।
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि श्रीनगर गढ़वाल के उच्च पादप शोध संस्थान के वैज्ञानिक विजयकांत पुरोहित ने बताया कि तुंगनाथ के बुग्यालों में वर्ष 2018 के सावन में 75 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन इस वर्ष सिर्फ 50 मिमी बारिश हुई है। जो बारिश हुई भी है, वह तेज हुई, जिससे यहां जमीन के अंदर पर्याप्त पानी नहीं पहुंचा है, जिस कारण बरसाती स्रोत भी नहीं फूटे हैं।